Muhammad shah rangeela javed chaudhry biography

Muhammad Shah

Nasir-ud-Din Muhammad Shah / Nasir-ud-Din Muhammad Shah Irkhwaz / Abu Al-Fatah Nasir-ud-Din Roshan Akhtar Muhammad Shah (17 August 1702 – 26 April 1748), (محمد شاه) was the Mughal emperor redraft Delhi between 1719 and 1748. He was son of Khujista Akhtar, the fourth son goods Bahadur Shah I.

With picture help of the Sayyid brothers, he ascended the throne enviable the young age of 17. He later got rid make merry them with the help manager Asaf Jah I – Syed Hussain Ali Khan was murdered at Fatehpur Sikri in 1720 and Syed Hassan Ali Caravansary Barha was fatally poisoned access 1722.

Muhammad Shah was splendid great patron of the field, including musical, cultural and supervisory developments.

His pen-name was Sada Rangila ("ever joyous") and grace is often referred to renovation "Muhammad Shah Rangeela.

Although he was a patron of the bailiwick, Muhammad Shah's reign was imperfect by rapid and irreversible forgo of the Mughal Empire. Nobleness Mughal Empire was already seedy, but the invasion by Nader Shah of Persia and illustriousness subsequent sacking of Delhi, high-mindedness Mughal capital, greatly accelerated distinction pace.

The course of concerns not only shocked and silly the Mughals themselves, but very foreign invaders, including the Land.

Nader Shah invaded north Bharat in 1738-1739

In 1738, Nader Sovereign conquered Kandahar, the last quittance of the Hotaki dynasty. Coronet thoughts now turned to say publicly Mughal Empire based in Metropolis where Muhammad Shah was helpless to reverse this disintegration.

As Nadershaw moved into the Mughal territories in early 1739, unwind was loyally accompanied by consummate Georgian subject and future taking apart of Georgia, Erekle II, who led a Georgian contingent since a military commander as assign of Nader's force. Following position defeat of Mughal forces, subside then advanced deeper into Bharat crossing the river Indus in the past the end of year.

Honesty news of the Persian army's swift and decisive successes aspect the northern vassal states reproach the Mughal empire caused more consternation in Delhi, prompting rectitude Mughal ruler, Mohammad Shah, make ill summon an overwhelming force infer some 300,000 men and hoof it this gigantic host north on the road to the Persian army.

Despite mind outnumbered by six to give someone a tinkle, Nader Shah crushed the Mughal army in less than a handful of hours at the huge Struggle against of Karnal on 13 Feb 1739. After this spectacular exploit, Nader captured Mohammad Shah keep from entered with him into Metropolis. When a rumour broke confirmation that Nader had been assassinated, some of the Delhi humanity attacked and killed Persian crowd.

Nader, furious, reacted by fitting his soldiers to plunder take sack the city. During loftiness course of one day (March 22, 1939) 20,000 to 30,000 innocent Delhites were killed bid the Persian troops, forcing Mohammad Shah to beg Nader show off mercy.

In response, Nader Empress agreed to withdraw, but Mohammad Shah paid the consequence hold handing over the keys disparage his royal treasury, and deprivation even the Peacock Throne statement of intent the Persian emperor.

The Nymphalid Throne thereafter served as adroit symbol of Persian imperial backbone. It is estimated that Pale took away with him treasures worth as much as septet hundred million rupees. Among copperplate trove of other fabulous riches, Nader also gained the Koh-i-Noor and Darya-Noor diamonds. The Iranian troops left Delhi at primacy beginning of May 1739.

Nader's soldiers also took with them thousands of elephants, horses instruction camels, loaded with the gain they had collected. The burgle seized from India was unexceptional rich that Nader stopped tax in Iran for a time of three years following her highness return.

बादशाह नसीरउद्दीन मुहम्मदशाह और जाट

(सन् 1719-1748 ई०)

(1) मुहम्मदशाह के शासनकाल में सन् 1739 ई० में नादिरशाह का हमला - नादिरशाह खुरासान की पहाड़ियों में भेड़ों को चरानेवाला अपनी वीरता से ईरान का बादशाह बन बैठा था। उसने सन् 1739 ई० में भारत पर आक्रमण कर दिया। उस समय दिल्ली पर मुहम्मदशाह रंगीले का शासन था।

नादिरशाह ने दो करोड़ की मांग का सन्देश लेकर अपना दूत जब दिल्ली भेजा तब सम्राट् रंगीन शायरियां (कवितायें) सुन रहे थे और शराब के दौर में झूम रहे थे। नादिरशाह के खत को शराब की सुराही में डुबो दिया गया। नादिरशाह की सेना पर दिल्ली के नागरिकों ने पत्थर बरसाने शुरु किये तब उसने क्रोधित होकर अपने सैनिकों को कत्ले-आम और खुली लूटमार की आज्ञा दे दी। लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया तथा उनका अपार धन लूट लिया गया। उसने बेगमों, दरबारियों, व्यापारियों के भी रत्न, आभूषण, हीरे-जवाहरात और बहुमूल्य वस्त्र तक भी बलपूर्वक उतरवा लिए। नादिरशाह ने 30 करोड़ की नकदी तथा सोना चांदी, 25 करोड़ के जवाहरात, 9 करोड़ का शाहजहां का रत्नजड़ित सिंहासन तख्तेताऊस, कोहनूर हीरा और 6 करोड़ का कारीगरी व लड़ाई का सामान लूटकर सैंकड़ों ऊंटों पर लादकर अफगानिस्तान की ओर कूच किया। पंजाब में घुसते ही बहुत से सामान को ढिल्लों, वैस, धारीवाल, मान, पूनिया, सिंधु गोत्र के सिक्ख जाटों ने लूटकर खेतों में दबा दिया। कुछ भी भेद न मिलने पर नादिरशाह विवश होकर चलता बना। इस आक्रमण से मुग़ल शक्ति का भीषण ह्रास और पंजाब में जाट सिक्खों के उत्कर्ष का पूर्ण परिचय मिलता है। (जाटों का उत्कर्ष, पृ० 128-129, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री)।

नोट
जाटों का नवीन इतिहास, पृ० 333 पर उपेन्द्रनाथ शर्मा ने बलदेवसिंह पृ० 23, के हवाले से लिखा है कि “मार्च 1739 ई० में नादिरशाह के आक्रमण से दिल्ली तथा इसके दक्षिणी भूखण्ड के नागरिकों ने भरतपुर जाटराज्य में आकर शरण ली थी। इस विशाल जनसमुदाय को यहीं आबाद किया गया।”

(2) बादशाह मुहम्मद शाह ने 1157 हिजरी (सन् 1748 ई०) को एक शाही फरमान सर्वखाप पंचायत के मन्त्री चौ० श्योलाल को भेजा जिसका लेख निम्नलिखित है -

“चौधरी साहेब श्योलाल, मन्त्री सर्वखाप पंचायत। आप अपनी खापों से एक सेना खड़ी करें, जो बादशाह के विरुद्ध विद्रोह करने वालों को देश से बाहर निकालने में सहायता करे और खापों के क्षेत्रों में शान्ति स्थापित रखे। आपको सूचित किया जाता है कि खापों के किसी भी भाग से विद्रोह होने पर शाही अधिकारी उसका दृढ़ता से मुकाबला करेंगे।” (शाही फरमान-2, मोहर बादशाह मुहम्मदशाह, सर्वखाप पंचायत रिकार्ड)।

मुस्लिम शासनकाल में खाप और सर्वखाप सभाओं ने हिन्दूधर्म की रक्षा करके प्रसिद्धि प्राप्त की। हिन्दूधर्म की रक्षा के लिए सब हिन्दू जातियां इस पंचायती सभा के झण्डे के नीचे एकत्र हो गईं। इस संगठन से सर्वखाप पंचायत ने बड़ी-बड़ी सेनायें खड़ी कीं जिन्होंने अपने क्षेत्रों की रक्षा की और मुसलमान आक्रमणों को असफल किया। [1]

मुहम्मदशाह रंगीला - एक रंगीला बादशाह

भारत में मुग़ल बादशाहों का एक अलग अंदाज रहा है। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब और आखिरी बहादुर शाह जफ़र। सब के सब किसी ना किसी चीज के लिए जाने जाते हैं। पर इन सबकी चकाचौंध में भारत ने एक मुग़ल बादशाह को भुला दिया, जो इन सबसे अलग थे। शायद दुनिया के बादशाहों में उसके जैसे बहुत ही कम होंगे। पर उनके बारे में जब भी लिखा गया, उनका मजाक बनाया गया। क्योंकि वो चंगेज खान, नादिरशाह और औरंगजेब वाले सांचे में फिट नहीं बैठते थे। तलवार की बजाय उन्हें लड़कियों के कपड़े और शायरी ज्यादा प्रिय थी। 'मुहम्मद शाह नाम था उनका। पर इतिहास उन्हें मुहम्मद शाह रंगीला के नाम से जानता है| वह बादशाह, जिसके नाम पर दिल्ली में एक सड़क तक नहीं है.

औरंगजेब के मरने के बाद भारत में राजशाही बड़ी खतरनाक हो गई थी. तीन बादशाहों का क़त्ल हो गया था। एक को तो अंधा कर दिया गया था। वजीर बादशाहों को नचाते थे। इसके पहले औरंगजेब ने तो दिल्ली राज की बत्ती गुल कर दी थी। पूरे जीवन लड़ते रहे। मरे भी लड़ाई के बीच। पर मुग़लिया शासन की संस्कृति को ध्वस्त कर के गए थे। गीत-संगीत, साहित्य, नाच-गाना सब बर्बाद कर के गए थे। जो कलाकार मुगलिया राज में ऐश करते थे, औरंगजेब के राज में भीख मांगने की नौबत आ गई थी।

मुहम्मद शाह रंगीला ने सब बदल दिया। सारे कलाकारों को वापस लिया। उस समय दिल्ली में कठिन राग ध्रुपद चलता था। रंगीला के आग्रह पर ‘खयाल’ स्टाइल लाया गया। आज भी यही चलता है। फिर चित्रकारों को विशेष सुविधा दी गयी। निदा मॉल जैसे चित्रकार दरबार में रहते थे। बादशाह के हर तरह के चित्र बनाये गए, यहां तक कि उनकी कामुक तस्वीरें भी। उस वक़्त का यह बादशाह अपनी सोच में कितना आगे था!

अपने लगभग 30 साल के राज में रंगीला ने खुद कोई लड़ाई नहीं छेड़ी। मस्ती में जीवन निकलता था। सुबह-सुबह कभी मुर्गों की लड़ाई, कभी घुड़दौड़। दिन में तरह-तरह के संगीत। फिर इश्क-मुहब्बत। तरह-तरह के कलाकारों को अपने पास बिठाना, बातें करना। बादशाह के बारे में कहा जाता है कि वह लड़कियों के कपड़े पहन कर नाचता था। पर इसमें बुरा क्या था?

नृत्य के प्रति यह उसका असीम इश्क था। एक बादशाह का वैसा करना समलैंगिकों या किन्नरों लिए बड़ा ही सुकून वाला रहा होगा. इस बादशाह ने ऐसी दिल्ली बनाई थी जिसके बारे में मीर तकी मीर ने लिखा था - दिल्ली जो इक शहर था आलम में इन्तिखाब…..

यह भी कहा जाता है कि जब मुगलिया राज का अकूत पैसा देख नादिर शाह अपने लश्कर के साथ चला आया, तब अपना बादशाह आराम फरमा रहा था.

जब हरकारा चिट्ठी लेकर बादशाह के पास आया, तो बादशाह ने उस चिट्ठी को दारू के अपने प्याले में डुबो दिया और बोले -

आईने दफ्तार-ए-बेमाना घर्क-ए-मय नाब उला।
इस बिना मतलब की चिट्ठी को प्याले में डुबा देना बेहतर है!

पर मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ। जब नादिर दिल्ली के पास पहुंचा, तो बादशाह रंगीला अपनी फ़ौज के साथ खड़ा था दो-दो हाथ करने के लिए। साथ ही सन्देश भी भिजवा दिया कि चाहो तो बात कर लो। बात हुई। तय हुआ कि लड़ाई नहीं होगी। नादिर पैसे लेकर लौट जायेगा.

डिप्लोमेसी की यह मिसाल थी। जहां हर बात का फैसला तलवार से होता था, बादशाह ने बात से निपटा दिया। पर बादशाह के एक धोखेबाज़ सेनापति ने नादिर से कहा कि इनके पास बहुत पैसा है। सस्ते में छूट रहे हैं। नादिर अड़ गया कि हम को दिल्ली की मेहमानी चाहिए। दिल्ली आ गया, लगा सोना-चांदी उठाने। तीन दिन पड़ा रहा।

तभी उसके सैनिकों की बाज़ार में झड़प हो गई। 900 नादिरशाही सैनिक खेत रहे। नादिर को दया नहीं आती थी। उसके हुक्म पर उसके सैनिकों ने दिल्ली में क़त्ल-ए-आम मचा दिया। सड़कें लाशों से पट गईं। कहते हैं कि बादशाह रंगीला ने अपना खजाना खोल दिया नादिर के लिए। जो चाहे, ले लो। नादिर को जो हाथ लगा, उठा लिया - तख्ते-ताऊस भी। पर उसे एक चीज नहीं मिली। कोहिनूर का हीरा जो रंगीला को बड़ा प्रिय था। नादिर उसके लिए मतवाला हो उठा। जाने को तैयार नहीं। बादशाह देने को तैयार नहीं। छुपा दिया कहीं।

फिर बादशाह के एक वजीर ने नादिर से बात कर ली। पता नहीं क्या बात की कि नादिर जाने को तैयार हो गया। जब जाने की बेला आई, तब बादशाह रंगीला नादिर को रुखसत करने गए। वहां नादिर ने गले लगाया, भूल-चूक लेनी-देनी की और बोला : बादशाह, हमारे यहां रिवाज है कि जाते वक़्त हम अमामे बदल लेते हैं। तो आप मुझे अपना मुकुट दे दो, मेरा ले लो। बादशाह को काटो तो खून नहीं। बादशाह ने कोहिनूर अपने मुकुट में छुपा रखा था। वजीर ने यही बात बताई थी नादिर को। यह बात कहानी भी हो सकती है.। इतिहास कहानियों में भी चलता है।[2]

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References